अगर कोई भी पंडित ज्योतिष आपको अगर आपके कुंडली में काल सर्प योग बताये तो आप एक साधारण सा प्रयोग करे और काल सर्प योग के दुष्प्रभाव को दूर सकते है
आप सिर्फ अपने घर अथवा दूकान ऑफिस में कही भी जहां
श्री पार्श्वनाथ भगवान् की मूर्ति या तस्वीर हो उसके सामने भगवान् को याद करते हुए उनके साथ धरणेन्द्र पद्मावती का ध्यान करते हुए
तीन बार रोज *!! उव्वसग्रहं स्तोत्र !!*का जाप सिर्फ तीन बार करके
आप अपने जीवन में काल सर्प दोष को अपने आप खत्म कर सकते है
और इसका प्रभाव आपको हाथो हाथ देखने को मिलेगा इस मेसेज को आप जितना अधिक शेयर करेंगे कुछ आपको भी मिलेगा
आप सिर्फ अपने घर अथवा दूकान ऑफिस में कही भी जहां
श्री पार्श्वनाथ भगवान् की मूर्ति या तस्वीर हो उसके सामने भगवान् को याद करते हुए उनके साथ धरणेन्द्र पद्मावती का ध्यान करते हुए
तीन बार रोज *!! उव्वसग्रहं स्तोत्र !!*का जाप सिर्फ तीन बार करके
आप अपने जीवन में काल सर्प दोष को अपने आप खत्म कर सकते है
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उवसग्गहरं स्तोत्र’ – अर्थ सहित
उवसग्गहरं पासं,
पासं वंदामि कम्म-घण मुक्कं ।
विसहर विस निन्नासं,
मंगल कल्लाण आवासं ।।१।।
अर्थ : प्रगाढ़ कर्म – समूह से सर्वथा मुक्त,
विषधरो के विष को नाश करने वाले,
मंगल और कल्याण के आवास
तथा उपसर्गों को हरने वाले
भगवन पार्शवनाथ के चरणों
में वंदना करता हूँ !
विसहर फुलिंग मंतं,
कंठे धारेइ जो सया मणुओ ।
तस्स गह रोग मारी,
दुट्ठ जरा जंति उवसामं ।।२।।
अर्थ : विष को हरने वाले
इस मन्त्ररुपी स्फुलिंग को
जो मनुष्य सदेव अपने कंठ में धारण करता है,
उस व्यक्ति के दुष्ट ग्रह, रोग बीमारी,
दुष्ट शत्रु एवं बुढापे के दुःख
शांत हो जाते है !
चिट्ठउ दुरे मंतो,
तुज्झ पणामो वि बहु फलो होइ ।
नरतिरिएसु वि जीवा,
पावंति न दुक्ख-दोगच्चं।।३।।
अर्थ : हे भगवान्!
आपके इस विषहर मन्त्र की बात तो दूर रहे,
मात्र आपको प्रणाम करना भी
बहुत फल देने वाला होता है !
उससे
मनुष्य और तिर्यंच गतियों में रहने वाले जीव भी
दुःख और दुर्गति को प्राप्त नहीं करते है !
तुह सम्मत्ते लद्धे,
चिंतामणि कप्पपाय वब्भहिए ।
पावंति अविग्घेणं,
जीवा अयरामरं ठाणं ।।४।।
अर्थ : वे व्यक्ति
आपको भलीभांति प्राप्त करने पर,
मानो चिंतामणि
और कल्पवृक्ष को पा लेते हैं,
और वे जीव बिना किसी विघ्न के
अजर, अमर पद मोक्ष को प्राप्त करते है!
इअ संथुओ महायस,
भत्तिब्भर निब्भरेण हिअएण ।
ता देव दिज्ज बोहिं,
भवे भवे पास जिणचंद ।।५।।
अर्थ : हे महान यशस्वी !
मैं इस लोक में भक्ति से भरे हुए हृदय से
आपकी स्तुति करता हूँ!
हे देव! जिन चन्द्र पार्शवनाथ !
आप मुझे प्रत्येक भव में
बोधि (रत्नत्रय) प्रदान करे!
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